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नया ज्ञानोदय: ताअजीम के मेआंर परखने होंगे
- Author(s):
- Pramod Ranjan (see profile)
- Date:
- 2007
- Group(s):
- Literary Journalism
- Subject(s):
- Hindi literature--Social aspects, Hindi poetry, Little magazines, Dalits in literature, Literature and society, Caste, Criticism, Formalism (Literary analysis), Romanticism
- Item Type:
- Article
- Tag(s):
- साहित्यिक विवाद, साहित्य में जाति, कलावाद, हिंदी आलोचना, हिंदी कविता
- Permanent URL:
- https://doi.org/10.17613/n7qr-8j25
- Abstract:
- वर्ष 2007 में हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘नया ज्ञानाेदय’ में प्रकाशित आलोचक विजय कुमार के एक लेख पर विवाद हुआ था। इस लेख में उन्होंने नए कवियों को आड़े हाथों लिया था। विजय कुमार के इस लेख के विरोध में युवा कवियों ने एक पुस्तिका भी प्रकाशित थी। पटना की संस्था ‘लोक दायरा’ द्वारा प्रकाशित इस पुस्तिका का शीर्षक था- “युवा विरोध था नया वरक”। इस विषय पर प्रमोद रंजन का लेख पटना से प्रकाशित पत्रिका मासिक ‘जन विकल्प’ के जुलाई, 2007 अंक में “ताअजीम के मेआंर परखने होंगे” शीर्षक से छपा था। प्रमोद रंजन ने इस लेख में इस विवाद के दूसरे पहलु की ओर ध्यान खींचा था। विवाद में पक्ष और विपक्ष, दोनों ओर से बाजार और भूमंडलीकरण को मुख्य खलनायक की तौर पर पेश किया जा रहा था और दबे-छुपे स्वरों में भारत में सामाजिक रूप से वंचित तबकों को मिले आरक्षण को साहित्य और कला की दुनिया को गंदा करने वाला कहा जा रहा था। प्रमोद रंजन ने अपने लेख में इस छुपे हुए स्वर को रेखांकित किया तथा बताया कि किस प्रकार हिंदी कविता और आलोचना की दुनिया सामाजिक रूप से एकरस है और यह कुल मिलाकर सिर्फ द्विजों की दुनिया है।
- Notes:
- यह लेख पटना से प्रकाशित जन विकल्प के जुलाई, 2007 अंक में प्रकाशित हुआ था। प्रेमकुमार मणि और प्रमोद रंजन इस पत्रिका के संपादक थे।
- Metadata:
- xml
- Published as:
- Journal article Show details
- Pub. Date:
- 2007
- Journal:
- जन विकल्प
- Volume:
- 1
- Issue:
- 7
- Page Range:
- 21 - 22
- Status:
- Published
- Last Updated:
- 10 months ago
- License:
- Attribution
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Item Name: नया-ज्ञानोदय-विवाद-ताअजीम-के-मेआंर-परखने-होंगे-प्रमोद-रंजन-जनवकल्प-2007-1.pdf
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