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यवन की परी (जन विकल्प कविता पुस्तिका)
- Author(s):
- Peria Parsia, Rati Saxena
- Editor(s):
- Premkumar Mani, Pramod Ranjan (see profile)
- Date:
- 2007
- Group(s):
- Feminist Humanities, Gender Studies, Literary Journalism
- Subject(s):
- Hindi literature, Little magazines, Literature and society, Poetry, Hindi poetry, South Asian poetry, Greece, Greek literature, Modern, Greek poetry, Modern, Criticism, Personal, in literature
- Item Type:
- Book
- Tag(s):
- Jan Vikalp Magazine, literature criticism, Yava ki pari, Kavita
- Permanent URL:
- https://doi.org/10.17613/tq1p-fn65
- Abstract:
- यह कविता पुस्तिका पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'जन विकल्प' के प्रवेशांक (जनवरी, 2007) के साथ नि:शुल्क वितरित की गई थी। जन विकल्प का प्रकाशन पटना से जनवरी, 2007 से दिसंबर, 2007 तक हुआ।पत्रिका के संपादक प्रेमकुमार और प्रमोद रंजन थे। उपरोक्त इस कविता-पुस्तिका की भूमिका रति सक्सेना लिखी है, जो निम्नांकित है : "पेरिया परसिया, सेतारह या पेरि अथवा हिंदी में पुकारू नाम परी कहें, नाम कुछ भी हो, कहानी एक ही है। इंटरनेट पर एक संवाद आरंभ हुआ, संवाद करने वाली ने अपना नाम सेतारह बताया, जो शायद परशियन भाषा का नाम है। ई मेल के रूप में संवाद का आरंभ मेरी वेब पत्रिका की प्रशंसा से हुआ लेकिन कुछ दिनों बाद एक बेहद घबराया सा पत्र मिला, पत्र लेखिका ने अपनी एक मित्र के बारे में लिखा, जिसने अभी-अभी पागलखाने में आत्महत्या कर ली। उनका कसूर यह था कि उन्होंने एक ऐसे कवि से मुहब्बत की थी जिससे वे कभी मिलीं नहीं थीं। पत्र लेखिका ने बताया कि मरने से पहले उसकी मित्र ने पागलखाने की एक नर्स को कुछ पत्र दिए थे...जो कविता से लगते हैं।.. जब कविता मिली तो मुझे लगा यह एक पुकार है वही पुकार जो कभी हमारे देश में मीरा की थी, वही जो हब्बा खातून की थी, और ना जाने कितनी स्त्रियों की, जो अपने दिमाग का मर्दों की तरह इस्तेमाल करने लगती है, जो मर्दों के लिए निर्धारित सीमा रेखा के भीतर घुसने की कोशिश करती है। परी का 'एक पत्र पागलखाने से तथा मेरी कविता 'परी की मजार पर` वेब पत्रिका में प्रसारित होने के बाद कुछ साइबर पाठकों के पत्र आए जिसमें तरह-तरह की शंकाएं थीं जैसे कि यह कवयित्री मरी नहीं है या फिर कोई और है जो परी के नाम पर लिख रहा है। मैं बस एक बात जानती हूं कि यह कविता औरत की तकलीफ बयान करती है जो देह और मन के साथ दिमाग भी रखती है। कवयित्री का वास्तविक नाम चाहे जो हो।"- रति सक्सेना
- Notes:
- एक अनाम कवि की इस बेहद शक्तिशाल कविता को हिंदी जगत के सामने लाने का श्रेय रति सक्सेना को है।
- Metadata:
- xml
- Published as:
- Book Show details
- Pub. DOI:
- 10.5281/zenodo.7220329
- Publisher:
- जन विकल्प
- Pub. Date:
- 2007
- Status:
- Published
- Last Updated:
- 8 months ago
- License:
- Attribution-NonCommercial
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Item Name: janvikalp_jan-2007_yavan-ki-pari_pramod-ranjan.pdf
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