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विज्ञान और तकनीक की ओर था पेरियार का झुकाव
- Author(s):
- Pramod Ranjan (see profile)
- Date:
- 2022
- Group(s):
- Political Philosophy & Theory, Sociology
- Subject(s):
- High technology--Social aspects--Forecasting, Rāmacāmi, Ī. Ve., Tantai Periyār, 1878-1973, Social movements, Dalits, Literature and science, Caste-based discrimination, Science--Social aspects, Interviews
- Item Type:
- Interview
- Tag(s):
- Literature and technology--History, Dalits--Political activity, Irāmacāmi Nāyakkar, Ī. Ve., Ramaswami Naicker, E. V., Hindi
- Permanent URL:
- https://doi.org/10.17613/j97b-1y06
- Abstract:
- पेरियार के बारे यह तो सभी जानते हैं कि वे जातिवाद के मुखर विरोधी थे और उन्होंने दक्षिण भारत में ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलन चलाया। लेकिन उनके लेखन में गहराई से रेखांकित करने लायक बात विज्ञान और तकनीक के प्रति उनका आकर्षण है। वे विज्ञान और तकनीक के बूते भविष्य को देखते हैं और उसके अनुरूप समाज को तैयार रहने का आह्वान करते हैं। इसी तरह, स्त्रियों को लेकर उनके आमूल परिवर्तनवादी विचार भी ध्यान देने योग्य हैं। वे मानते थे कि स्त्री मुक्ति की बात करने वाले वाले पुरुषों का आंदोलन पाखंड है। पेरियार कहते हैं कि अपनी मुक्ति के लिए स्त्रियों को ही आगे आना होगा। वे स्त्रियों की मुक्ति के गर्भ निरोध के वैज्ञानिक उपायों को बहुत आवश्यक मानते हैं। .... लिखने-पढ़ने की दुनिया काफी बदल चुकी है और निकट भविष्य में इसमें आमूलचूल परिवर्तन आ जाएगा। मशीनों की कृत्रिम बुद्धिमत्ता इस काबिल हो चुकी है कि वह न सिर्फ स्वयं नई चीजें सीख रही है, बल्कि अनेक क्षेत्रों में ऐसा बहुत कुछ पैदा करने में सक्षम हो गई है, जिन्हें कुछ वर्ष पहले तक सिर्फ मनुष्य के बूते का काम माना जाता था। हमारे देखते-देखते मशीन और मनुष्य के बीच की विभाजन-रेखा धुंधला हो रही है। इसे एक बानगी से समझें, मशीनों के इस नए अवतार के कारण दुनिया की प्रतिष्ठित विज्ञान विषयों की शोध पत्रिकाएं एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रही हैं। इन पत्रिकाओं में प्रकाशित होने पर लेखकों को उनकी नौकरियों में प्रमोशन, आर्थिक अनुदान आदि अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। अनेक लेखक इन पत्रिकाओं को प्रकाशनार्थ मशीनों द्वारा तैयार किए गए फर्जी शोध-पत्र भेज रहे हैं। मशीनों द्वारा इंटरनेट पर मौजूद वैज्ञानिक शोधों के अथाह सागर से एकदम मौजूं संदर्भ ढूंढ कर सजाए गए ये ‘शोध-पत्र’ बिल्कुल मौलिक जैसे लगते हैं। पीयर रिव्यू करने वाले ऐसे जाली शोध-पत्रों को पकड़ पाने में असफल हो रहे हैं। लेखन, चित्रकला, संगीत के क्षेत्र में भी मशीनें तेजी से पैठ बना रही हैं। अब वे संगीत की नई धुनें स्वयं बना ले रही हैं, ऐसी पेंटिंग्स कर रही हैं, जिनमें अर्थवत्ता समेत प्राय: ऐसा बहुत कुछ है, जो किसी बड़े चित्रकार के चित्र में पाया जाता था। पत्रकारिता में भी उसके कदम पड़ चुके हैं।
- Notes:
- प्रमोद रंजन से बातचीत पर आधारित यह समाचार राष्ट्रीय सहारा के पटना संस्करण में 14 नवंबर, 2022 को प्रकाशित हुआ था।
- Metadata:
- xml
- Published as:
- Newspaper article Show details
- Pub. URL:
- http://rashtriyasahara.com/epaper/1/3/2022-11-14/1
- Pub. Date:
- November 14, 2022
- Newspaper:
- Rashtriya Sahara
- Edition:
- Patna
- Section:
- Rag Darbari
- Page Range:
- 2 - 2
- Status:
- Published
- Last Updated:
- 11 months ago
- License:
- Attribution
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